हमहीं पर सतरात कन्हाई।
प्रथमहिं कमल कंस कौं दीजै, डारहु हमहिं मराई।
साँच कहौ मैं तुमहिं श्रीदामा, कमल काज मैं आयौ।
कहा कंस बपुरौ, किहीं लायक, जाकौं मोहिं डरायौ।
अधा, बका, केसी, सकटासुर, तृना सिला पर डारयौ।
बकी कपट करि प्यावन आई ताकौं तुरत पछारयौ।
कालीदह-जल छुवत मरे सब, सोइ काली धरि ल्याऊँ।
सूरदास प्रभु देह धरे कौ, गुन प्रगटयौ इहिं ठाऊँ।।538।।