स्रम करिहौ जब मेरी सी।
तब तुम अधर-सुधा-रस बिलसहु, मैं ह्वै रहिहौं चेरी सी।।
बिना कष्ट यह फल न पाइहौ, जानति हो अवडेरी सी।
षट रितु सोत तपनि तन गारौ, बाँस बँसुरिया केरी सी।।
कहा मौन ह्वै ह्वै जु रही हौ, कहा करति अवसेरी सी।
सुनहु सूर मैं न्यारी ह्वैहौं, जब देखौं तुम मेरी सी।।1338।।