स्याम सवनि कौं देखहीं, वै देखतिं नाहीं।
जहाँ तहाँ ब्याकुल फिरैं, धीर न तनु माहीं।।
कोउ बंसीबट कौं चलीं, कोउ बन घन जाहीं।
देखि भूमि वह रास की जहँ-तहँ पग छाहीं।।
सदा हठीली लाड़िली, कहि-कहि पछिताहीं।
नैन सजल जल ढारहीं ब्याकुल मन माही।।
एक-एक ह्वै ढूंढ़हीं, तरुनी बिकलाहीं।
सूरज-प्रभु कहुँ नहिं मिले, ढूंढति द्रुभ माहीं।।1096।।