स्याम भए राधा वस ऐसै।
चातक स्वाति, चकोर चंद ज्यौं, चक्रवाक रवि जैसै।
नाद कुरंग, मीन जल की गति, ज्यौ तन के बस छाया।।
इकटक नैन अंगछवि मोहे, थकित भए पतिजाया।।
उठै उठत, बैठै बैठत है, चले चलत सुधि नाही।
'सूरदास' बड़भागिनि राधा, समुझि मनहिं मुसुकाही।।2138।।