स्याम के भुजनि बीच, राखी है सुरति सीचि, सोई सुकुमारिजागी तमचुर स्वर तै।
हा हा कान्ह उदै भान, अबही होइगौ जान, धुकुर पुकुर छती, गुरुजन डर तै।
मधुर बचन कह्यौ, प्यारे कौ भलौ मनायौ, चुबन अँकोर देति, निरुवारि गर तै।
आँगन मैं ठाढ़े आइ, ललिता लेति बलाइ, ‘सूर’ स्वामिनी राजति आनँद के भर तै।। 72 ।।