स्याम कहत पूजा गिरि मानी।
जो तुम भक्ति भाव सौं अरप्यौ, देवराज सब जानी।
तुम देखत भोजन सब कीन्हौ अब तुम मोहिं पत्याने।।
बड़ौ देव गिरिराज गोवर्धन, इनहिं रहौ रहौ तुम माने।
सेवा भली करी तुम मेरी, देव कही यह बानी।।
सूर नंद मुख चूमत हरि कौ, यह पूजा तुम ठानी।।842।।