स्याम इहै कहि कै उठे, नृप हमहिं बुलाए।
अतिहिं कृपा हम पर करी, जो काल्हि मँगाए।।
संग सखा यह सुनत ही, चकित मन कीन्हौ।
कहा कहत हरि सुनत हौ, लोचन भरि लीन्हौ।।
स्याम सखनि मुख हेरि कै, तब करी सयानी।
काल्हि चलौ नृप देखियै संका जनि आनी।।
हरषि भये हरि यह कहै, मन मन दुख भारे।
'सूर' संग अकूर के, हरि ब्रज पग धारे।।2954।।