स्यामा स्याम खेलत दोउ होरी 2 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग सारंग


मनमानी सब करति बड़ाई। राधा मोहन गाँठि जुराई।।
करति सबै रुचि की पहुनाई। नंद महर कौ गारी गाई।।
फगुवा हमकौ देहु मँगाई। पंचरँग सारी बहुत दिवाई।।
तुरत सबै जुवतिनि पहिराई। लीन्ही जो जाकै मन भाई।।
खेलत फागु रह्यौ रस भारी। वृद्ध किसोर बात अरु नारी।।
अति स्रम जानि गए जल तीरा। ग्वाल ग्वालि हलधर हरि बीरा।।
परम पुनीत जमुन-जल-रासी। क्रीड़त जहाँ ब्रह्म अबिनासी।।
धन्य धन्य सब ब्रज के बासी। बिहरत है हरि सँग करि हाँसी।।
जलक्रीड़ा तरुनिनि मिलि कीन्हौ। ब्रज-नर-नारिनि कौ सुख दीन्हौ।।
करि अस्नान चले ब्रजधामा। करे सबनि के पूरन कामा।।
जो सुख नंद जसोदा पायौ। सो सुख नाही प्रगट बतायौ।।
सुर बनिता यह साध बिचारै। कैसै हरि सँग हमहुँ बिहारै।।
धन्य धन्य ये ब्रज की बाला। धन्य धन्य गोकुल के ग्वाला।।
'सूर' स्याम जिनके सुखदाई। भुव प्रगटे हरि हलधर भाई।।2910।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः