स्यामा प्यारी बोलन लागे तमचुर, घटि गई रजनी।
री वै मनमोहन ठाढ़े, ब्रजनायक सुनि सजनी।।
ठाढ़े है हरि कुंजद्वारै, ललित बेनु बजाई हो।
सुनत कैसै रहति, कैसै तोहिं भवन सुहाई हो।।
तुम कुँवरि वृषभानु की, कछु नेह प्रीति न जानहू।
बोलि पठई तोहिं हरि, काहै न चित कछु आनहू।।
नंदनंदन कह्यौ ऐसौ, सुंदरी ह्याँ आइ हो।
और नहिं कछु काज बन मै, नैकु मधुरै गाइ हो।।
'सूर' प्रभुहिं बिचारि मन मे प्रीति सौ उर लाइयै।
यहै पुनि पुनि कहति मैं, मनबानछित फल पाइयै।।2800।।