सौधे की उठति झकौर, मोहन रंग भरे।
चोवा चंदन अगरु कुकुमा, सोहै माट भरे।।
रतन जटित पिचकारी कर गहे बालक बृंद खरे।
भरि पिचकारी प्रेम सौ डारी, सो मेरे प्रान हरे।।
सब सखियन मिलि मारग रोक्यौ जब मोहन पकरे।
अंजनि आँजि दियौ अँखियनि मै, हाहा करि उबरे।।
फगुवा बहुत मँगाइ साँवरे, कर जोरे अरज करे।
धनि धनि 'सूर' भाग ताके, प्रभु जाकै सँग बिहरे।।2897।।