सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 97

Prev.png

सूरसागर प्रथम स्कन्ध-97

विनय राग


193.राग सारंग
जिन जिनही केसव उर गायौ।
तिन तुम पै गोविंद-गुसाई, सबनि अनै-पद पायौ।
सेवा यहै, नाम सर-अवसर जो काहुहि कहि आयौ।
कियौ बिलंब न छिनहुँ कृपानिधि, सोई निकट बुलायौ।
मुख्‍य अजामिल मित्र हमारौ, सो मैं चलत बुझायौ।
कहाँ कहाँ लौं कहौं कृपन की, तिनहुँ न स्त्रवन सुनायौ।
व्‍याघ, गीध, गनिका, जिहि कागर, हौं तिहिं चिठि न चढा़यौ।
मरियत लाज पाश पतितनि मैं, सूर सबै बिसरायौ।

194.राग नट नारायन
बिरद मनौ वरियाइन छाँड़े।
तुम सौं कहा कहाँ करूनामय, ऐसे प्रभु तुम ठाढै़।
सुनि सुनि साधु-बचन ऐसौ सठ, हठि औगुननि हिरानौ।
धोयौ चाहत कीच भरौ पट, जल सौं रुचि नहिं मानौ।
जौ मेरी करनी तुम हेरौ, तौ न करौ कछु लेखौ।
सूर पतित तुम उधारन, बिनय दृष्टि अब देखौ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः