सुनि सुग्रीव, प्रतिज्ञा मेरी -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग टोड़ी


 
दूसरैं कर बान न लैहौं।
सुनि सुग्रीव, प्रतिज्ञा मेरी, एकहिं बान असुर सब हैहौं।
सिव-पूजा जिहिं भाँति करी है, सोइ पद्धति परतच्छ दिखैहौं।
दैत्य प्रहारि पाप-फल-प्रेरित, सिर माला सिव-सीस चढै़हौं।
मनौ तुल-गन परत अगिनि-मुख, जारि जड़नि जम-पंथ पठैहौं।
करिहौं नाहिं बिलंब कछू अब, उठि रावन सन्मुख ह्वै धैहौं।
इमि दल दुष्ट देव-द्विज मोचन, लंक बिभीषन, तुमकौं दैहौं।
लछिमन, सिया समेत सूर कपि, सब सुख सहित अजोध्या जैहौं॥157॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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