सुनि रे मधुकर चतुर सयाने -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


 
सुनि रे मधुकर चतुर सयाने।
सुख की सौज उठी ता दिन तै, पठए स्याम बिनाने।।
नैननि तेज गयौ ता दिन तै, सावन ज्यौ बरषाने।
उर तै हास बिलास दोऊ मिलि, ये दुरि कहूँ लुकाने।।
ता दिन तै पंछी भए बैरी, भाषा बैर बुलाने।
बन के बास निवास सकल ये, भए भयानक बाने।।
मोहन प्रान हरे ता दिन तै, फेरि न यह गति आने।
विरह अनग अनल तन दाहत, को या परिहिं जाने।।
अब ये अक देखियन ऐसे, रहे जु चित्र लिखाने।
‘सूर’ सजीवन होहिं सु नव तन, रूप माधुरी साने।।3675।।

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