सुनि री सखी बचन इक मोसौ।
रोम-रोम प्रति लोचन चाहति, द्वै साबित है तोसौ।।
मैं विधना सौ कहौ कछू नहिं, नित प्रति निमि कौ कोसौ।
बेऊ जो नीकै दोउ रहते, निरखत रहती हौ सौ।।
इक इक अंग-अंग-छबि धरती, मैं जो कहती तोसौ।
‘सूर’ कहा तू कहति अयानी, काम परयौ मुनि ज्यौ सौं।।1829।।