सुनि राधा तो सौ हम हारी।
तेरे चरित नहीं कोउ जानै, बस कीन्हे गिरिधारी।।
अबही कान्ह टारि करि पठए, धनि तेरी महतारी।
अंग अंग रचि कपट चतुरई, बिधना आपु सँवारी।।
अबही प्रगट दुहुँनि हम देखे, जानति दैहौ गारी।
'सूर' स्याम कै यह बुधि नाही, जितनी है नो घाँ री।।1955।।