सुनहु सखी राधा की बानी।
हमकौ धन्य कहति आपुन धिक यह निर्मल अति जान।।
आपुन रंक भई हरि धन कौ, हमहिं कहति धनवंत।
यह पूरी, हम निपट अधूरी, हम असंत, यह संत।।
धिक धिक हम, धिक बुद्धि हमारी, धन्य राधिका नारि।
‘सूर’ स्याम कौ इहिं पहिचान्यौ, हम भइँ अंत गँवारि।।1787।।