सुता लए जननी समुझावति।
संग बिटिनिअनि कैं मिलि खेलौ, स्याम-साथ सुनि सुनि रिस पावति।।
जातैं निंदा होइ आपनी, जातैं कुल कौं गारी आवति।
सुनि लाड़िली कहति यह तोसौं, तोकौं यातैं रिस करि धावति।।
अब समुझी मैं बात सबनि की, झूठैं ही यह बात उड़ावति।
सूरदास सुनि-सुनि ये बातैं, राधा मन अति हरष बढावति।।1711।।