साँची प्रीति जाति हरि आए। पूरन नेह प्रगट दरसाए।
लई उठाइ अंक भरि प्यारी। भ्रमि-भ्रमि स्रम कीन्हौ तनुगारी।।
मुख-मुख जोरि अलिंगन दीन्हौ। बार-बार भुज भरि उर लीन्हौ।
बृंदाबन-घन-कुंज लता-तर। स्यामा-स्याम नवल-नवला बर।।
मनमोहन-मोहिनि सुखकारी। कोक-कला-गुन प्रगटे भारी।
छूटे–बंद अलक सिर छूटे। मोतिन-हार टुटे, सुख लूटे।।
सूर स्याम बिपरीत बढ़ाई। नागरि सकुचि रही लपटाई।।1678।।