सहस सकट भरि कमल चलाए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ



सहस सकट भरि कमल चलाए।
अपनी समसरि और गोप जे, तिनकौं साथ पठाए।
और बहुत काँवरि दधि-माखन, अहिरनि काँधैं जोरि।
नृप कैं हाथ पत्र यह दीजौ, बिनती कीजौ मोरि।
मेरौ नाम नृपति सौं लीजौ, स्याम कमल लै आए।
कोटि कमल आपुन नृप माँगे, तीनि कोटि हैं आए।
नृपति हमहिं अपनौ करि जानौ, तुम लायक हम नाहिं।
सूरदास कहियौ नृप आगैं तुमहिं छाँड़ि कहँ जाहिं!।।583।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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