सखी मोहिं मोहनलाल मिलावै।
ज्यौं चकोर चंदा कौ, कीटक भृंगी ध्यान लगावै।
बिनु देखे मोहि कल न परति है, यह कहि सबनि सुनावै।
बिनु कारन मैं मान कियौ री, अपनेहिं मन दुख पावै।।
हा-हा करि-करि पायन परि-परि हरि-हरि टेर लगावै।
सूर स्याम बिनु कोटि करौ जौ, और नहीं जिय आवै।।1114।।