सखी कहति तु बात गँवारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


सखी कहति तु बात गँवारी।
याकी सरि कैसै कोउ ह्वैहै, जाकै बस हैं श्री बनवारी।।
ब्रजभीतर यह रूप आगरी, व्रत लीन्हौ दृढ़ गिरिवरधारी।।
प्रीति गुप्त ही की है नीकी, या पर मैं रीझी हौ भारी।।
साँची कहौ नेह ऐसौई, पाछै मोकौ दीजौ गारी।
'सूरदास' राधा जौ खोटी, तउ देखौ यह कृष्न पियारी।।1902।।

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