सखिनि सिखर चढ़ि टेर सुनायौ।
विरहिनि सावधान ह्वै रहियौ, सजि पावस दल आयौ।।
नव वादर बानैत, पवन ताजी चढ़ि, चुटक दिखायौ।
चमकत बीजु सेल्ह कर मंडित, गरज निसान बजायौ।।
चातक, पिक, झिल्ली गन दादुर, सब मिलि मारू गायौ।
मदन सुभट कर वान पंच लै, ब्रज सन्मुख ह्वै धायौ।।
जानि विदेस नंदनंदन कौ, अबलनि त्रास दिखायौ।
‘सूर’ स्याम पहिले गुन सुमिरै, प्रान जात विरमायौ।। 3328।।