श्री जमुना पतित पावन करयौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


(श्री) जमुना पतित पावन करयौ।
प्रथमहीं जब दियौ दरसन, सकल पापनि हरयौ।।
जल तरंगनि परसि कै, पय पान सौं मुख भरयौ।
नाम सुमिरत गई दुरमति, कृष्न रस बिस्तरयौ।।
गोप कन्या कियौ मज्जन, लाल गिरिधर बरयौ।
सूर श्री गोपल सुमिरत, सकल कारज सरयौ।।1176।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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