वैद मिल्यौ कुबिजा कौ नीकौ।
कबहुँ छुवत न पानि पानि सौ, उपकारी नितही कौ।।
चल्यौ जु चलन नगर नारिनि मैं, रोग न रह्यौ कही कौ।
बनी तिहारी उनकी ऊधौ, आयौ जस कौ टीकौ।।
रँग पर रँग लग्यौ रे मधुकर, मधुप भयौ जु तही कौ।
'सूरदास' प्रभु समुझि न देखौ, ममनी चढ़ौ चही कौ।। 3649।।