ललन तुम ऐसे लाड़ लड़ाए।
लै करि चीर कदम पर बैठे, किन ऐसैं ढंग लाए।।
हा हा करति, कंचुकी माँगतिं, अंबर दिए मन भाए।
कीन्हो प्रीति प्रगट मिलिबे कौं, सबके सकुच गँवाए।।
दुख अरु हाँसी सुनौ सखी री, कान्ह अचानक आए।
सूर स्याम कौं मिलन सखी अब, कैसे दुरत दुराए।।794।।