रुदन करति बृषभानु-कुमारी।
बार-बार सखियनि उर लावति, कहाँ गए गिरिधारी।
कबहूँ गिरति धरनि पर ब्याकुल, देखि दसा ब्रजनारी।
भरि अंकवारि धरति, मुख पोंछति, देति नैन जल ढारी।।
त्रिया पुरुष सौं भाव करति है, जाने निठुर मरारी।
सूर स्याम कुल-धरम आपनो, लए रहत बनवारी।।1112।।