राम पै भरत चले अतुराइ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग सारंग
भरत का चित्रकूट-गमन


 
राम पै भरत चले अतुराइ।
मनहीं मन सोचत मारग मैं, दई, फिरैं क्यौं राघवराइ।
देखि दरस चरननि लपटाने, गदगद कंठ न कछु कहि जाइ।
लीनौ हृदय लगाइ सूर प्रभु, पूछत मद्र भए क्यों भाइ?॥51॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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