रंगभूमि आए अति नदसुवन वारे।
निरखतिं व्रजनारि नेह, उर तै न बिसारे।।
देखौ री मुष्टिक चानूर, इन हँकारे।
कैसे ये बचै नाथ साँस उरध डारे।।
रजक धनुष जोधा हति दतगज उपारे।
निरदय यह कस इनहिं चाहत है मारे।।
कहाँ मल्ल, कहाँ अतिहिं कोमल ये वारे।
कैसी जननी कठोर कीन्हे जिन न्यारे।।
वारचार इहै कहतिं भरि भरि दोउ तारे।
'सूरज' प्रभु बल मोहन उर तै नहि टारे।।3065।।