यह सुनि नंद बहुत सुख पाए।
कमल पठाइ दए, नृप लीन्हे, देखन कौं दोउ सुतनि बुलाए।
सेवा बहुत मानि है लोनही, ब्रज-नारो-नर हरष बढ़ाए।
बड़ी बात भइ कमल पठाए मानहुँ आपुन जल तैं ल्याए।
आनँद करत जमुन-तट ब्रज-जन, खेलत-खातहिं दिवस बिहाए।
इक सुख स्याम बचे काली तैं, इक सुख कंसहिं कमल पठाए।
हँसत स्याम-बलराम सुनत यह हमकौं देखन नृपति बुलाए।
सूरदास प्रभु मातु-पिता-हित, कमल कोटि है ब्रजहिं पठाए।।588।।