यह सुंदरी कहाँ तैं आई।
बार बार प्रतिबिंब निहारति, नागरि मन मन रही लुभाई।।
कर तै मुकुर दूरि नहि डारति, हृदय माँझ कछु रिस उपजाई।
देखै कहूँ नैन भरि याकौ, नागर कुँवर कन्हाई।।
मेरी कहा चले या आगै, यह धौ आजु अरस तै आई।
'सूरदास' याकौ या ब्रज मै, ऐसी को बैरिनि जो ल्याई।।2191।।