मोहन मोहिनि बातै करै जु -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग नट




मोहन मोहिनि बातै करै जु मोकौ करत न आवै री।
तन सुख मन सुख नैननिहूँ सुख स्रवन सुधा रस प्यावै री।।
दच्छिन चरन चरन पर राखे मुरली मधुर बजावै री।
मनिमय मकर-मनोहर-कुडल सिषीसिपड डुलावै री।।
सजल मेघ घन स्यामल सुंदर पीतांबर फहरावै री।
असित अभ्र मनु लसति तड़ितदुति इहि विधि सोभा पावै री।।
उर सुचिगध सुरंग माल पदपकज लौ लटकावै री।
अति उमँगी सुंदरता रोकित छवि तरग उपजावै री।।
वन के धातु बिचित्र चित्र तनु अंग अनंग लजावै री।
नटवर भेष मनोहर मूरति मधुर मधुर सुर गावै री।।
ककन-किकिनि-नूपुर-रव जुवतीजन मोद बढावै री।
बाल मराल परस्पर बोलत मुर्छामदन जगावै री।।
काम कमान समान भौह दोउ मनमथ बान चलावै री।
चंचल नैन सैन रतिपति मनु ब्रजललना ललचावै री।।
जगतबिमोहन हँसि कबहूँ कै मानहिं मान छुड़ावै री।
नैकु-बिलोकन-सहज-माधुरी तीनौ ताप नसावै री।।
कैसौ राम रच्यौ बृंदावन बंसी नारि बुलावै री।
मनौ नीलमनि-कनक-खंभ-बिच मंडल सुभग बनावै री।।
मानौ घन घन अंतर दामिनि मदन के मदहि गँवावै री।
कलानिधान सकल-गुन-सागर निर्त्तत भेद दिखावै री।।
सीतल मंद सुगंध पवन वहै उडुपति अतिहिं थकावै री।
नव किसोर नंदलाल लड़ैतौ 'सूरदास' जिय भावै री।। 50 ।।

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