मोहन बालगुबिंदा भाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग अड़ानौ


मोहन बालगुबिंदा भाई, मेरौ कह जानै खोरि।
उरहन लै जुवती सब आवतिं, झूठी बतियाँ जोरि।।
कोऊ कहति, गेंड़ुरी लीन्‍ही, कोउ कहैं गागरि फोरी।
कोऊ चोली हार बतावति, कान्‍हहुँ तैं भोरो।।
अब आवैं जौ उरहन लै कै, तौ पठवौं मुख मोरि।
सूर कहाँ मेरौ तनक कन्‍हाई, आपुन जोबन-जोरि।।1430।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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