मै जानी जिय जहँ रति मानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिभास


मै जानी जिय जहँ रति मानी।
तुम आए हौ लालन नेरै, जब चिरियाँ चुचुहानी।।
मुख की बात कहा कहौ ठानी, बातनि ही पहिचानी।
एते पर अँखिया रससानी, अरु पगिया लपटानी।।
भलहिं जावकरंग बनानी, अधरहि अंजन जानी।
बिनुगुनबनी माल, सब अगनि उलटी सकल निसनी।।
धनि त्रिय तुमकौ जो सुखदानी, जागत रैनि बिहानी।
'सूरदास' प्रभु गुननिधान हौ, अंतर की सब जानी।।2514।।

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