मैं भरुहाऐं लागत हौं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग विलावल


मैं भरुहाऐं लागत हौं!
कनक-कलस-रस मोहिं चखावहु, मैं तुमसौं माँगत हौं।।
उहीं ढंग तुम रहे कन्‍हाई, उठीं सबै झिझकारि।
लेहु असीस सबनि के मुख तैं, कतहिं दिवावति गारि।।
नीकैं देहु हार दधि-मटुकी, बात कहन नहिं जानत।
कैहैं जाइ जसोदा सौं प्रभु सूर अचगरी ठानत।।1483।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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