मेरौ अति प्यारौ नँदनंद ।
आए कहाँ छाँड़ि तुम उनकौ, पोच करी मतिमद ।।
बल मोहन दोउ पीड़ नयन की, निरखत ही आनद ।
सरवर घोष, कुमोदिनि व्रजजन, स्याम बदन बिनु चंद ।।
काहै न पाइ परे वसुद्यौ के, घालि पाग गर फद ।
‘सूरदास’ प्रभु अबकै पठवहु, सफल लोक मुनि बंद ।। 3136 ।।