मेरो कहा करत ह्वैहै।
कहियौ जाइ बेगि पठवहिं गृह, गाइनि को को द्वैहै।।
दीजै छाँड़ि नगर वारी सब, प्रथम ओर प्रतिपारौ ।
हमहूँ जिय समुझै नहिं कोऊ, तुम तै हितू हमारौ ।।
आजुहि आजु, कालि काल्हिहिं करि, भलौ जगत जस लीन्हौ ।
आजुहिं कालि कियौ चाहत हौ, राज अटल करि दीन्हौ ।।
परदा ‘सूर’ बहुत दिन चलतौ, दूहुनि फबती लूटि ।
अंतहु कान्ह आइहै गोकुल, जन्म जन्म की ऊटि ।। 3174 ।।