मेरो कहा करत ह्वैहै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


मेरो कहा करत ह्वैहै।
कहियौ जाइ बेगि पठवहिं गृह, गाइनि को को द्वैहै।।
दीजै छाँड़ि नगर वारी सब, प्रथम ओर प्रतिपारौ ।
हमहूँ जिय समुझै नहिं कोऊ, तुम तै हितू हमारौ ।।
आजुहि आजु, कालि काल्हिहिं करि, भलौ जगत जस लीन्हौ ।
आजुहिं कालि कियौ चाहत हौ, राज अटल करि दीन्हौ ।।
परदा ‘सूर’ बहुत दिन चलतौ, दूहुनि फबती लूटि ।
अंतहु कान्ह आइहै गोकुल, जन्म जन्म की ऊटि ।। 3174 ।।

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