मेरैं हठ क्यौं निबहन पैहौ?
अब तौ रोकि सबनि कौं राख्यौ, कैसे करि तुम जैहौ?।।
दान लेहुँगौ भरि दिन दिन कौ, लेख्यौ करि सब दैहौ।
सौंह करत हौं नंद बबा की, मैं कैहौं तब जैहौ।।
आवति-जाति रहतिं याही पथ, मोसौं बैर बढ़ैहौ।
सुनहु सूर हम सौं हठ माँडतिं कौन नफा कर लैहौ।।1539।।