मेरे नैननिही सब खोरि।
स्याम-बदन-छवि निरखि जु अटके, बहुरे नहीं बहोरि।।
जउ मैं कोटि जतन करि राखति, घूँघट ओट अगोरि।
तउ उडि मिले बधिक के खग ज्यौ पलक पींजरा तोरि।।
बुधि विवेक बल बचन चातुरी, पहिलेहि लई अँजोरि।
अति आधीन भई सँग डोलतिं, ज्यौऽब गुडी बस डोरि।।
अब धौ कौन हेतु हरि हमसौ, बहुरि हँसत मुख मोरि।
सुनहु 'सूर' दोउ सिंधु सुधा भरि, उमँगि मिले मिति फोरि।।2357।।