मुरली स्याम बजावन दै री।
स्रवननि सुधा पियति काहैं, इहिं तू जनि बरजै री।।
सुनति नहीं, वह कहति कहा है, राधा राधा नाम।
तू जानति हरि भूलि गए मोहिं, तुम एकै पति बाम।।
वाही कैं मुख नाम धरावत, हमहिं मिलावत ताहि।
सूर स्याम हमकौं नहिं बिसरे, तुम डरपति हौ काहि।।1357।।