मुरली मोहि लिये गोपाल।
बस करि आपु अधर-रस अँचवति, करि पाए हरि ख्याल।।
सर्बस अधर-सुधा-रस सबकौ, कोउ देखन नहिं पावति।
आपुहिं पियति अघाति न तौहुँ, पुनि-पुनि लोभ बढ़ावति।।
दुहुँ कर बैठि गर्व सौं गरजति, बादति सुनति न बात।
जो कुल-दही डरै सो कौनैं, अतिहिं निर्दयी गात।।
बारे तैं तप कियौ जौन हित, सो गँवाइ पछितानी।
सूरदास बन-ब्याधि माँझ-घर, देखि-देखि अकुलानी।।1326।।