मिलहु स्याम मोहिं चूक परी।
तिहिं अंतर तनु की सुधि नाहीं, रसना रट लागी न टरी।।
कृष्न-कृष्न करि टेरि उठति है, जुग सम बीतति पलक-धरी।
धरनि परी ब्याकुल भई बोलति, लोचन धारा-आंसु झरी।।
कबहूँ मगन, कबहू सुधि आवति, सरन सरन कहै बिरह-जरी।
सूर निरखि ब्रजनारि दसा यह, चकित भईं जहँ-तहाँ खरी।।1116।।