माई बिहरत गोपाल राइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग ललित



(माई) बिहरत गोपाल राइ, मनिमय रचे अंगनाइ,
लरकत पररिंगनाइ, घूटुरूनि डोलै।
निरखि निरखि अपनो प्रतिबिंब, हंसत किलकत औ,
पाछैं चितै फेरि-‍फेरि मैया-मैया बोलै।
ज्यौं अलिगन सहित बिमल जलज जलहिं धाइ रहै,
कुटिल अलक बदन की छबि, अवनी परि लोलै।
सूरदास छबि निहारि, थकित रहीं घोष नारि,
तन-मन-धन देतिं वारि, बार बार ओलै ।।101।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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