(माई) बिहरत गोपाल राइ, मनिमय रचे अंगनाइ,
लरकत पररिंगनाइ, घूटुरूनि डोलै।
निरखि निरखि अपनो प्रतिबिंब, हंसत किलकत औ,
पाछैं चितै फेरि-फेरि मैया-मैया बोलै।
ज्यौं अलिगन सहित बिमल जलज जलहिं धाइ रहै,
कुटिल अलक बदन की छबि, अवनी परि लोलै।
सूरदास छबि निहारि, थकित रहीं घोष नारि,
तन-मन-धन देतिं वारि, बार बार ओलै ।।101।।