महर ढुटौना सालि रहे।
जन्महि तै अपड़ाउ करत है, गुनि गुनि हृदय कहे।।
दनुजसुता पहिले सघारी, पय पीवत दिन सात।
गयौ प्रतिज्ञा करि कागासुर, आइ गिरयौ मुरछात।।
त्रिना संकट छिन मैं संघारयौ, केसी हत्यौ प्रचारि।
जे जे गए बहुरि नहि देखे, सबही डारे मारि।।
ज्यौ त्यौ करि इन दुहुनि सँघारौ, बात नहीं कछु और।
'सूर' नृपति अति सोच परयौ जिय, यहै करत मन दौर।।2926।।