मधुबन तुम क्यौं रहत हरे ।
बिरह बियोग स्याम सुंदर के ठाढ़े क्यौ न जरे ।।
मोहन बेनु बजावत तुम तर, साखा टेकि खरे ।
मोहे थावर अरु जड़ जगम, मुनि जन ध्यान टरे ।।
वह चितवनि तू मन न धरत है, फिरि फिरि पुहुप धरे ।
'सूरदास' प्रभु बिरह दवानल, नख सिख लौ न जरे ।। 3210 ।।