मधुकर भलैहि आए वीर।
दरस दुर्लभ सुलभ पाए, जानिहौ पर पीर।।
कहत बचन बिचार बिनु बहु, सोधिहौ मन माहि।
प्रानपति की प्रीति ऊधौ, है कि हमसौ नाहि।।
कौन तुमसौ कहै मधुकर, कहत जोग जु नाहि।
प्रीति की कछु रीति न्यारी, जानिहौ मन माहि।।
नैन नींद न परै निसि दिन, बिरह दाढ़ी देह।
कठिन निरदै नंद कै सुत, जोरि तोरयौ नेह।।
कौन तुमसौ कहै मधुकर, गुप्त प्रगटित बात।
‘सूर’ के प्रभु क्यौ बनै, जौ करै अबला घात।।3885।।