भोरहि सोभा सिर सिंदूर।
जुगल पाटि घनघटा, बीच मनु उदय कियौ नव सूर।।
मन्मथरथ आनंदकंद मुख, चंदकला परिपूर।
चक तटक, निसंक सुदृग मृग, जनु रन तम सम जूर।।
सुंदर वर नासिकादेस पर, बेसरिमुक्ता रूर।
किधौ तूल तिल फूलनि कर कन, किधौ असुर-गुरु-कूर।।
रदसद दामिनि, अधरसुधा मधु, रूप-झपा-झकझूर।
बचनरचन माधुरी अधर पर, कौन कोकिला कूर।।
उच्च उरोज, मनोज नृपति के, जोबन-कोट-कँगूर।
हरिसरि कटितट लरकि जाइ, जिमि बिसद-नितंब-गरूर।।
कदली जंघ, मराल मंद गति रूप अनूप समूर।
'सूरदास' स्वामिनि सोभा पर, बारति सखि तृन तूर।।2668।।