ब्रज जुवती मिलि नागरि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग श्रीहठी


(ब्रज जुवती मिलि) नागरि, राधा पै मोहन लै आईं।
लोचन आँजि, भाल बेदी दै, पुनि पुनि पाइ पराई।।
बेनी गूँथि, माँग सिर पारी, बधू बधू कहि गाई।
प्यारी हँसति देखि मोहनमुख, जुवती बने बनाई।।
स्याम अंग कुसुमी नई सारी, अपनै कर पहिराई।
कोउ भुज गहति, कहति कछु कोऊ, कोउ गहि चिबुक उठाई।।
एक अधर गहि सुभग अँगुरियनि, बोलत नहीं कन्हाई।
नीलांबर गहि खूँट, चूनरी, हँसि हँसि गाँटि जुराई।।
जुवती हँसति देति कर तारी, भई स्याम मनभाई।
कनक कलस अरगजा घोरि कै, हरि कै सिर ढरकाई।।
नंद सुनत हँसि महरि पठाई, जसुमति धाई आई।
पट मेवा दै स्याम छुड़ायौ, 'सूरदास' बलि जाई।।2879।।

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