ब्याकुल देखि इंद्र कौं श्रीपति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


ब्याकुल देखि इंद्र कौं श्रीपति, उभय भुजा करि लियौ उठाइ।
अभै निभै कर माथै दीन्हौ, श्रीमुख बचन कह्यौ मुसुक्याइ।।
कहा भयौ करि क्रोध चढ़े ब्रज, मैं तुरतहिं करि लियौ सहाइ।
हमकौं जानि नहीं तुम कीन्हौ, बिनु जाने यह करी ढिठाइ।।
अब अपनैं जिय सोच करौ जिनि यह मेरी दीन्ही ठकुराइ।
सूर स्याम गिरिधर सब लायक, इंद्रहिं कह्यौ करौ सुख जाइ।।978।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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