बोलि लेहु हलधर भैया कौं।
मेरे आगैं खेल करौ कछु, सुख दीजै मैया कौं।
मैं मूदौं हरि आँखि तुम्हारी, बालक रहैं लुकाई।
हरषि स्याम सब सखा बुलाए, खेलन आँखि मुँदाई।
हलधर कह्यौ आँखि को मूँदै, हरि कह्यौ मातु जसोदा।
सूर स्याम लए जननि खिलावति, हरष सहित मन मोदा।।239।।