बेगि चलौ बलि कुँवरि सयानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


बेगि चलौ बलि कुँवरि सयानी।
समय बसंत, बिपिन रथ, हय, गय, मदन-सुभट-नृप-फौज पलानी।।
चहुँ दिसि चाँदनि, निसा चमू चलि, मनौ धवल धर धूरि उड़ानी।
सोरह कला छपाकर की छवि, सोभित सीस छत्र सिर तानी।।
बोलत हँसत चपल बदजिन, मनहुँ प्रसंसत, पिक बर बानी।
धीर समीर रटत बर अलिंगन, मनहुँ कमोदिक मुरलि सुठानी।।
कुसुम सरासन अधिक बिराजत, कठिन मानगढ़ अति अभिमानी।
'सूरदास' प्रभु की है यह गति, करहु सहाइ राधिका रानी।।2785।।

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